कल निश्चित ही एक ऎतिहासिक दिन होगा चुनावी राजनीति का।बिहार चुनाव के परिणाम बेचारे वोटर की शक्ति को किस अंजाम पर ले जाएंगे देखना है। वो बेचारा आम आदमी जो चुनाव में लोकतांत्रिक नरेशों का भाग्यविधाता होता है चुनाव के बाद हाशिये पर फेंक दिया जाता है। कोई भी उसके लिए काम नहीं करता,किसी भी प्रयास का वह केंद्र नहीं होता,कोई भी सिर्फ उसके लिए निष्ठावान नहीं होता।इसलिये ही वह बाढ़ में डूबते उतराते, सैकड़ो किलोमीटर पैदल चल कर,कोरोना से अगर बच गया तो लोकतंत्र के महापर्व में अपनी तथाकथित शक्ति की परम आहुति देकर अपना भाग्यविधाता चुनता है,पहले से ही बाजी पर बाजी हारे इस बिचारी जनता के पास ज्यादा विकल्प नही होते इस लिए वह किसी पर भी दावँ लगाता है ,चाहे वो सिद्ध लुटेरे ही क्यों न हो,और वैसे भी फर्क क्या है शायद 15 साल भी कम पड़ गए साबित करने में।
अब देखना है कि होगा क्या
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