Wednesday, June 4, 2025

 मैं अपनी वंशबेल का

आखिरी बूटा, अंतिम शाख हूँ

है क्यों ह्रदय व्यथित,उद्वेग से भरा हुआ

टूटना तो हर बूटे को,

हर शाख का निश्चित जीवन

फिर क्यों ह्रदय प्रश्नों से है घिरा हुआ


खुद में समेटे खुद की दुनिया

मैं इस दुनिया का 

इकलौता मुसाफिर तो नही हूँ

है यायावरी नसीब अपना

तो नियति को स्वीकारने में

फिर क्यों, कोलाहल है हुआ


मैं अपनी वंश परम्परा का

आखिरी निशान हूँ

क्यों भयभीत सा हृदय मेरा

मिटते तो वो भी, 

हैं जो उत्कीर्ण प्रस्तरों पर

फिर क्यों हृदय विषाद से है घिरा हुआ


27.05.25

No comments:

Post a Comment