"हुंकारों से महलों की
नींव उखड़ जाती है
सांसों के बल से
ताज हवा में उड़ता है
जनता की रोके राह
समय मे वो ताव कहाँ
वह जिधर चाहती है
काल उधर मुड़ता है
दो राह,समय रथ का
घरघर नाद सुनो
सिंहासन खाली करो कि
जनता आती है"..
दिनकर की ये पंक्तियां आज सहज ही श्री लंका की घटना देख कौंध उठी।
लाखों की भीड़ आज राष्ट्रपति भवन के सामने जमा है राष्ट्रपति भाग चुके है ,प्रधानमंत्री कभी भी भाग सकते हैं।जनता नहीं जानती की उनका भविष्य किधर ले जाएगा उन्हें।विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका है,देश पेट्रोल नही खरीद सकता ,स्कूल ,कॉलेज बंद किये जा चुके हैं।आम नागरिक जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं से वंचित है ,कीमते 200%से भी ज्यादा बढ़चुकीहै,पानी ,बिजली,दवाइयां, अनाज लोंगो की पहुंच से बाहर हो चुकी हैं।लोग लाइनों में मरने को विवश है।
राष्ट्रपति भवन,प्रधानमंत्री का घर जनता के आक्रोश का सामना कर रहा है।
57 अरब डॉलर से भी ज्यादा का विदेशी कर्ज सर पर है ,जिसमे करीब11 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष कर्ज चीन से लिया गया है,अप्रत्यक्ष रूप से बाजार की देनदारी में भी चीन का लगभग 50%पैसा है यानी श्रीलंका पूरी तरह से चीन की कर्ज़ नीति में फंस चुका है।IMF से श्रीलंका द्वारा 3अरब डॉलर का कर्ज इस संकट से उबरने के लिए मांगा गया है जो IMF देने से मना कर चुका है। ऐसी स्थिति में यह द्विपीय देश कैसे पहुंच गया यह अवश्य विचारणीय है। थोड़ा पीछे जाने की आवश्यक्ता है जब मई 2009 लिट्टे का खात्मा हुआ और वर्षो से चल रहे गृह युद्ध मे श्री लंका की सेना विजयी हुई।युद्ध नायक के रूप महिंद्रा राजपक्षे का उदय हुआ। महिंद्रा राजपक्षे सबसे सशक्त सिंघली नेता के रूप में उभरे।यह वो समय है जब तमिलों के प्रति मानवीय सहानुभूति रखने वाले भारत के विरुद्ध माहौल बनाया जाने लगा।यद्यपि भारत ने कभी भी श्री लंका के विभाजन और लिट्टे के पृथकतावादी आंदोलन को समर्थन नहीदिया है ।फिर राजपक्षे परिवार ने भारत से अधिक चीन पर विश्वास किया।युद्ध से उबरने,अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के नाम पर चीन से बड़े निवेश प्राप्त किया गए,अरबो डॉलर के कर्ज उठा लिए गए।चीन को तो ऐसे मौकों की तलाश रहती है जहाँ वो अपनी शर्तों पर निवेश कर सरकार,सत्ता, नीतियों पर नियंत्रण कर सके।विशेष रूप से भारत के पड़ोसी देशों में।क्या अजीब बात है एक ही परिवार के लोग सरकार और सेना के सभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिए गए।राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, सेनापति सभी एक परिवार केऔर वो परिवार चीन के हाथों में खेलता रहा।रही सही कसर सरकार की एक्सपेरिमेंटल पॉलिसीस जैसे देश मे अचानक ऑर्गेनिक खेती को लागू कर देना,बिना ये विचार किये की उपज और अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा?कोरोना ने देश के उद्योग धधे तबाह कर दिए आमदनी का दूसरा बड़ा स्रोत पर्यटन ध्वस्त हो गया,अर्थव्यवस्था गहरे दबाव में आ गई पर सरकार कड़े और उपयुक्त कदम नहीं उठा सकी, सब्सिडी के बोझ,लॉलीपॉप पॉलिसीस ने हालात को बद से बदतर बना दिया।आज हालात ये है कि विदेशी मुद्रा भंडार खाली है,कर्ज़ देने को कोई तैयार नहीं, आम लोग सड़कों पर है,राष्ट्पति,प्रधानमंत्री भाग चुके हैं।एक द्विपीय देश अपनी सरकारों की गलत नीतियों असमय मरने को विवश है...।
श्रीलंका की त्रासदी की श्लाघ्य समीक्षा। निसन्देह दक्षिण एशिया/ हिन्द महासागर में अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए सहायता की भूराजनीति (Geopolitics of Aid) द्वारा ड्रैगन ने श्रीलंका को शिकार बना लिया है।सबसिडी की रेवड़ी अर्थव्यवस्था के लिए कितनी घातक है, भारत को भी सबक लेना चाहिए।
ReplyDelete