Tuesday, November 10, 2020

कुछ पता नहीं

 पहिये सी दौड़ती ज़िन्दगी

कब जाये थम ,कुछ पता नहीं

मुट्ठी में रेत सी कैद ज़िंदगी

कब जाये फिसल कुछ पता नहीं


          घर से चले कई हसीन सपने लिये

          कब वो सजे मेरे अंगना ,कुछ पता नहीं

           वादे सब रह जाये अधूरे

           साँसे कब जाये ठहर, कुछ पता नहीं


            आँखों ही आँखों मे ले उनसे विदा 

            घर से चले तो पर लौटना हो न हो

            कुछ पता नहीं


बूंदों से छिटकते पल

तेरी बांहों में मरने की ख्वाहिश

कभी पूरी हो न हो कुछ पता नहीं

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