हाथों में शस्त्र आभूषण नही
शक्ति है तेरी बंधन नहीं,
धर्म तेरा वही जो शस्त्रो का है
कर्म तेरा वही जो शस्त्रों का है,
दंड ही नियति उपद्रव की ,
संहार ही परिणिति पाप की,
गांडीव उठा अर्जुन! इच्छा यही प्रभु की
काल बैठा जिनके मस्तक पर,
वो मदान्ध ही मारते पत्थर सोये सिंहों को
दुःसाहस देता न्योता दंड को ,
अति का अंत ही शोभित न्याय को,
अन्यायी का दमन ही पोषण जीवन को,
हो संशयहीन अब तू संहार कर,
गांडीव उठा चुन चुन कर प्रहार कर,
चुन चुन कर प्रहार कर।