Tuesday, August 26, 2025

वंचना और पीड़ा..

 वंचना और पीड़ा

सिर्फ 

शब्द नहीं..


हैं कथा किसी

दुख 

भरे हृदय की..


हों पहचानते जैसे 

गूंगे

स्वरों का मोल..


यूँ ही पहचानती

 वंचना

गूंगी पीड़ा के बोल..


सुख की छाया में बैठे

आत्ममुग्ध

जाने क्या..


बेबसी में 

बहे

अश्रुओं का मोल..


क्या जाने 

निष्ठुरता

उस प्रतीक्षा को..


जो अपलक जाग रही

नयनों

को खोल..


26.08.25