Tuesday, November 10, 2020

कुछ पता नहीं

 पहिये सी दौड़ती ज़िन्दगी

कब जाये थम ,कुछ पता नहीं

मुट्ठी में रेत सी कैद ज़िंदगी

कब जाये फिसल कुछ पता नहीं


          घर से चले कई हसीन सपने लिये

          कब वो सजे मेरे अंगना ,कुछ पता नहीं

           वादे सब रह जाये अधूरे

           साँसे कब जाये ठहर, कुछ पता नहीं


            आँखों ही आँखों मे ले उनसे विदा 

            घर से चले तो पर लौटना हो न हो

            कुछ पता नहीं


बूंदों से छिटकते पल

तेरी बांहों में मरने की ख्वाहिश

कभी पूरी हो न हो कुछ पता नहीं

Monday, November 9, 2020

बिहार चुनाव

 कल निश्चित ही एक ऎतिहासिक दिन होगा चुनावी राजनीति का।बिहार चुनाव के परिणाम बेचारे वोटर की शक्ति को किस अंजाम पर ले जाएंगे देखना है। वो बेचारा आम आदमी जो चुनाव में लोकतांत्रिक नरेशों का भाग्यविधाता होता है चुनाव के बाद हाशिये पर फेंक दिया जाता है। कोई भी उसके लिए काम नहीं करता,किसी भी प्रयास का वह केंद्र नहीं होता,कोई भी सिर्फ उसके लिए निष्ठावान नहीं होता।इसलिये ही वह बाढ़  में डूबते उतराते, सैकड़ो किलोमीटर पैदल चल कर,कोरोना से अगर बच गया तो लोकतंत्र के महापर्व में अपनी तथाकथित शक्ति की परम आहुति देकर अपना भाग्यविधाता चुनता है,पहले से ही बाजी पर बाजी हारे इस बिचारी जनता के पास ज्यादा विकल्प नही होते इस लिए वह किसी पर भी दावँ लगाता है ,चाहे वो सिद्ध लुटेरे ही क्यों न हो,और वैसे भी फर्क क्या है शायद 15 साल भी कम पड़ गए साबित करने में।