Monday, July 25, 2022

फुटकर कवितायेँ

मेरी कविताएं - 1

 

सफर है अपने इख्तियार में 

मंज़िले नसीब से मिला करतीं हैं।

राहे लाख लंबी हो

मंज़िलो को करीब से छुआ करती हैं

उम्र खोई मंज़िलो के इश्क में भटकते

अब तो राहों की ख़ाक से ही

मुहब्बत हुआ करती है।



मेरी कविताएं - 2

 

सलाम उन्हें

जो कांधे पे रखे ज़नाज़ा

अपने सरदार का

खड़े चट्टान से

बंद किये रास्ता दिले गुबार का



मेरी कविताएं - 3

 

कमज़र्फ ही सही तेरी नज़र में

पर खुदमुख्तार हम हैं

तू माने या न माने

बरखुद्दार हम हैं।

चाहते तो झुक कर सारी

क़ायनात तुझे दे देते

पर कर न सके ऐसा

क्योंकि अब तलक खुद्दार हम हैं


Wednesday, July 13, 2022

लंका के लिए आगे की राह


भारत का सामुद्रिक पड़ोसी ,मित्र श्री लंका वर्तमान में बहुत गंभीर आर्थिक विपत्ति के दौर से गुज़र रहा है।यह इस द्विपीय देश पर आज़ादी (1948)के बाद से आया सबसे बड़ा आर्थिक संकट है,अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने का प्रभाव सामाजिक और अस्थिरता के रूप में सामने आ रहा है।

अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है,श्री लंका की मुद्रा वैश्विक स्तर पर निम्नतम स्तर पर आ चुकी है।एक डॉलर 326श्री लंकाई रुपये के बराबर हो चुका है।सकल घरेलू उत्पाद दर नकारात्मक हो -3.0के स्तर पर है।

मुद्रास्फीति  अपने चरम पर है अगले कुछ माह में इसके 70%तक बढ़ जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।यदि अन्य संकेतांको पर दृष्टि डाली जाए तो ये भी खतरनाक संकेत दे रहे हैं।सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले वाह्य ऋण 79.1%तथा सार्वजनिक ऋण101%है

जीडीपी के मुकाबले ऋण 119%से भी अधिक हो चुका है।12 अप्रैल2022 से देश द्वारा समस्त ऋण अदायगी को रोक दिया गया है।विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका है।पेट्रोलियम आयात बिल अदा करने में देश असमर्थ हो चुका है इसलिए स्कूल ,कॉलेज बंद है,बिजली की आपूर्ति नही हो पा रही, वस्तुओं का आयात न हो पाने के कारण आम लोगो की कठनाइयाँ बहुत बढ़ चुकी है।60 लाख से अधिक लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहें है।

श्री लंका के वर्तमान आर्थिक संकट को1970-80के लैटिन अमेरिकी ऋण संकट से भी गम्भीर माना जा रहा है।यह ऋण संकट'ला डेकडा पेडीर्डा' के नाम से जाना जाता है।60-70के दशक में ब्राज़ील,आर्जेन्टीना और मैक्सिको आदि ने बुनियादी ढांचे और औद्योगिकीकरण हेतु बड़े पैमाने पर ऋण प्राप्त किये।धीरे -धीरे यह ऋण स्तर जी डी पी के 50%से भी अधिक हो गया।1970-80 आते -आते ऋण स्तरों और मंहगाई में 1000%से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई ।इसका परिणाम यह हुआ कि आय और आयात गिर गए,आर्थिक विकास जड़ हो गया,बेरोजगारी और मुद्रास्फीति चरम पर पहुंच गई,मजदूरी का मूल्य 40%तक गिर गया जिससे क्रय शक्ति ह्रास हुआ।

इसी प्रकार एक अन्य आर्थिक संकट 1997 का एशियाई आर्थिक संकट है जो आसियान देशो से सम्बंधित है।थाईलैंड,इंडोनेशिया, फिलिपींस, और कोरिया की अर्थव्यवस्था इस दौर में लगभग ध्वस्त हो चुकी थी।इन देशों मे विदेशी ऋण अनुपात 1993-96 के मध्य 100%से 167% तक बढ़ गया था,जी डी पी शून्य वृद्धि दर प्रदर्शित कर रही थी।विदेशी मुद्रा की कमी,घरेलू मुद्रा का पतन,कर्ज़ में बढ़ोत्तरी भी देखी गई।

इससे स्पष्ट है कि भले आज श्री लंका अपनी गलत नीतियों के कारण इस आर्थिक संकट में फंस चुका है किंतु धैर्य,दृढ़ता और समझदारी से इस संकट से निकला जा सकता है।यद्यपि यह समय लेगा किंतु इस भवँर से उबरना  संभव है।यह संकट विशुद्ध रूप सेअदूरदर्शिता का परिणाम है।लिट्टे के खात्मे के पश्चात श्रीलंका के पुनर्निर्माण हेतु तत्कालीन सरकारों द्वारा आधारभूत ढांचे और अनुत्पादक मदों पर व्यय हेतु विदेशों से बड़े निवेश प्राप्त किये गए।राजपक्षे परिवार सत्ता,सेना और शासन पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किये हुए था।परिवार के सभी सदस्य प्रधानमंत्री, राष्ट्पति,सेनापति और अन्य सभी महत्वपूर्ण पदो पर आसीन थे।इस दौर में  चीन द्वारा अनेक परियोजनाओं बड़े निवेश किये गए।चीनी निवेश अनेक खुली और गुप्त शर्तो के साथ प्राप्त किये गए।अंतरराष्ट्रीय बाजार से अंधाधुंध ऋण तो प्राप्त हो गया किन्तु इनके ब्याज की अदायगी पर एक बड़ा हिस्सा दिया जाने लगा।जिससे उत्पादन के स्रोतों पर व्यय कम हो गया।परिणाम स्वरूप बेरोजगारी बढ़ी और विकास दर कम हुई।

विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम करने हेतु फ़र्टिलाइज़र को बैन कर दिया गया जिससे आयात बिल संतुलित किया जा सके।इस अदूरदर्शी कदम के घातक परिणाम हुए।श्री लंका का 27%श्रमिक कृषि क्षेत्र में काम करता है।आर्गेनिक खेती के फितूर ने कृषि उपज को आधा कर दिया।देश की बड़ी आबादी खाद्य असुरक्षा का शिकार हो गई। कोविड के कारण आय का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन उद्योग बर्बाद हो गया।कृषि और पर्यटन उद्योग चौपट होने से लोग बेरोजगार हुए और सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा।

सत्ता पर नियंत्रण बनाये रखने हेतु सरकार द्वारा लोकलुभावन निर्णय लिए गए।ईंधन और पेट्रोलियम पर भारी सब्सिडी दी गई।राष्ट्रीय आय संकुचित हो रही थी और विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो रहा था ,इन सबका एक ही परिणाम था अर्थव्यवस्था का पतन।जो आज मूर्त हो गया है।

फिलहाल श्री लंका को कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे वह इस विपदा से उबर सके।

सबसे पहले IMF से पैकेज प्राप्त करने और ऋण पुनर्संरचना का प्रयास किया जाना चाहिए।

दूसरा कृषि क्षेत्र को मजबूत करना होगा।बुवाई से पहले उर्वरक व ईंधन उपलब्ध करवाने होंगे। उपज बढ़ने से खाद्य संकट समाप्त होगा तथा अराजकता पर भी नियंत्रण होगा।

तीसरा उपाय पर्यटन उद्योग को पुनः खडा करना होगा जिससे विदेशी मुद्रा प्राप्त हो।

सर्वाधिक महत्वपूर्ण रणनीति निर्यातोन्मुखी औद्योगिकिकरण को अपनाना होगा।

विनिवेश, खर्च पर नियंत्रण आदि कठोर फैसले करने होंगे।

श्री लंका के नेतृत्व को यह समझना होगा कि लोकलुभावन नीतियां देश के हित मे नहीं होती।

कठोर फैसलों और साहस से श्री लंका इस विपत्ति से अवश्य उबर जाएगा।लंका के नागरिक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले लोग है।आंतक पर विजय प्राप्त करने वाले इस संकट पर भी विजय प्राप्त करेगें, आवश्यकता है एक दृढ़ नेतृत्व और दो अच्छे मानसून की।

Sunday, July 10, 2022

एक द्वीप के डूबने की त्रासदी

 





"हुंकारों से महलों की 

नींव उखड़ जाती है

सांसों के बल से

ताज हवा में उड़ता है

जनता की रोके राह

समय मे वो ताव कहाँ

वह जिधर चाहती है

काल उधर मुड़ता है

दो राह,समय रथ का

घरघर नाद सुनो

सिंहासन खाली करो कि

 जनता आती है"..

दिनकर की ये पंक्तियां आज सहज ही श्री लंका की घटना देख कौंध उठी।

लाखों की भीड़ आज राष्ट्रपति भवन के सामने जमा है राष्ट्रपति भाग चुके है ,प्रधानमंत्री कभी भी भाग सकते हैं।जनता नहीं जानती की उनका भविष्य किधर ले जाएगा उन्हें।विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका है,देश पेट्रोल नही खरीद सकता ,स्कूल ,कॉलेज बंद किये जा चुके हैं।आम नागरिक जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं से वंचित है ,कीमते 200%से भी ज्यादा बढ़चुकीहै,पानी ,बिजली,दवाइयां, अनाज लोंगो की पहुंच से बाहर हो चुकी हैं।लोग लाइनों में मरने को विवश है। 

राष्ट्रपति भवन,प्रधानमंत्री का घर जनता के आक्रोश का सामना कर रहा है।

57 अरब डॉलर से भी ज्यादा का विदेशी कर्ज सर पर है ,जिसमे करीब11 करोड़ डॉलर का प्रत्यक्ष कर्ज चीन से लिया गया है,अप्रत्यक्ष रूप से बाजार की देनदारी में भी चीन का लगभग 50%पैसा है यानी श्रीलंका पूरी तरह से चीन की कर्ज़ नीति में फंस चुका है।IMF से श्रीलंका द्वारा 3अरब डॉलर का कर्ज इस संकट से उबरने के लिए मांगा गया है जो IMF  देने से मना कर चुका है। ऐसी स्थिति में यह द्विपीय देश कैसे पहुंच गया यह अवश्य विचारणीय है। थोड़ा पीछे जाने की आवश्यक्ता है जब मई 2009 लिट्टे का खात्मा हुआ और वर्षो से चल रहे गृह युद्ध मे श्री लंका की सेना विजयी हुई।युद्ध नायक के रूप महिंद्रा राजपक्षे का उदय हुआ। महिंद्रा राजपक्षे सबसे सशक्त सिंघली नेता के रूप में उभरे।यह वो समय है जब तमिलों के प्रति मानवीय सहानुभूति रखने वाले भारत के विरुद्ध माहौल बनाया जाने लगा।यद्यपि भारत ने कभी भी श्री लंका के विभाजन और लिट्टे के पृथकतावादी आंदोलन को समर्थन नहीदिया है ।फिर राजपक्षे परिवार ने भारत से अधिक चीन पर विश्वास किया।युद्ध से उबरने,अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के नाम पर चीन से बड़े निवेश प्राप्त किया गए,अरबो डॉलर के कर्ज उठा लिए गए।चीन को तो ऐसे मौकों की तलाश रहती है जहाँ वो अपनी शर्तों पर निवेश कर सरकार,सत्ता, नीतियों पर नियंत्रण कर सके।विशेष रूप से भारत के पड़ोसी देशों में।क्या अजीब बात है एक ही परिवार के लोग सरकार और सेना के सभी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिए गए।राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री, सेनापति सभी एक परिवार केऔर वो परिवार चीन के हाथों में खेलता रहा।रही सही कसर सरकार की एक्सपेरिमेंटल पॉलिसीस जैसे देश मे अचानक ऑर्गेनिक खेती को लागू कर देना,बिना ये विचार किये की उपज और अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा?कोरोना ने देश के उद्योग धधे तबाह कर दिए आमदनी का दूसरा बड़ा स्रोत पर्यटन ध्वस्त हो गया,अर्थव्यवस्था गहरे दबाव में आ गई पर सरकार कड़े और उपयुक्त कदम नहीं उठा सकी, सब्सिडी के बोझ,लॉलीपॉप पॉलिसीस ने हालात को बद से बदतर बना दिया।आज हालात ये है कि विदेशी मुद्रा भंडार खाली है,कर्ज़ देने को कोई तैयार नहीं, आम लोग सड़कों पर है,राष्ट्पति,प्रधानमंत्री भाग चुके हैं।एक द्विपीय देश अपनी सरकारों की गलत नीतियों असमय मरने को विवश है...।

Saturday, July 9, 2022

काली



 एकवेणी जपाकरणा

 नग्ना खरास्थिता | लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी || वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||" इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

काली परिवर्तन,शक्ति और युद्ध की देवी है।उनका भयानक रूप जीवन की भयावहता का प्रतीक है।जीवन हमेशा सुंदर,सज्जित और सरल

नही होता ।शिव आनंद का प्रतीक है।यानी जीवन की कठनाइयों से युद्ध करने के लिए अपनी खुशी और आनंद को स्वयं रौंदना पड़ता है।तब जीवन मे परिवर्तन औऱ शक्ति आती है।सौंदर्य व कोमलता दोनों ही आनंदित जीवन से जुड़े है,लास्य एवं काम की उत्पत्ति भी सौंदर्य से  होती है जो जीवन का स्रोत है। इस जीवन चक्र को अबाधित चलाते रहने के लिए भयंकरता, अन्याय और अधर्म पर नियंत्रण आवश्यक है यह मात्र अपनी समस्त ऊर्जा को केंद्रित कर ही हो सकता है।सृजन के लिए विनाश को,धर्म के लिए अधर्म को ,वास्तविक सौंदर्य के लिए वासना पर नियंत्रण आवश्यक है और यह नियंत्रण उस असीम ऊर्जा से ही प्राप्त हो सकता है जो स्व को भस्म कर,अपने आनंद की आहुति दे,ब्रम्हांड में विलीन होने से एकत्र होती है।कोयला काला है भस्म हो कर ऊर्जा देता है जो जीवन चलाता है ,यह ऊर्जा भी अपने रूप परिवर्तन के साथ काली राख बन जाती है।यानी काले से आरंभ काले पे अंत।जहाँ कुछ नहीं वो श्वेत है जहाँ समस्त ऊर्जा,समस्त रंग वो काला है।ब्रम्हांड काला है ,अंतरिक्ष काला है,ऊर्जा और प्रकाश के स्रोत तारे अपना चक्र पूरा कर काले हो जाते है।इसलिए काली ...काली है उस तप्त ऊर्जा का प्रतीक जो सृजन के लिए आवश्यक है।जीवन की उस शक्ति और जिजिविषा का प्रतीक जो सृष्टि के निर्माण के लिए परम आवश्यक है।माता का वाहन गधा है जो प्रतीक है निष्ठा,समर्पण और धैर्य का।परिवर्तन के लिये शक्ति औऱ धैर्य दोनों ही चाहिए।काली भयानक नही है ,विपदाओं से जूझने के उस साम्यता का प्रतीक है  जो विजय के लिए आवश्यक है।

नहीं शोभित श्रृंगार 

जिस पर

नही मदमाता रूप जिसका

कदाचित भयंकर 

काली कराल सी

उलझे केश ,

भृकुटि विशाल सी

यम को साधती 

शक्ति विकराल सी

तड़ित तैरती 

जिसके नयनों में

काल बंधा जिसके

 मस्तक पर

शिव को रौंदती चामुंडा 

स्वयं महाकाल सी

स्व भस्मीभूत हो

शेष किसी

 तप्त दग्ध सी

दृढ ,स्थिर ,निर्मोही

 किसी न्याय दंड सी

शक्तिपुंज किसी अमोघ

शस्त्र के प्रहार सी

कदाचित भयंकर

काली कराल सी

शमशान की भस्म पर

अघोरियों के तिलस्म पर

नृत्य करती किसी 

चांडाल सी

नहीं मदमाता रूप जिसका

ज्वलंत किसी अग्निकुंड

के मुखार सी

जिह्वा सुर्ख किसी

रक्तरंजित बाण सी

नहीं शोभित श्रृंगार....

कोमलता का मर्दन कर

सहज नारित्व का 

विसर्जन कर

पापियों के संहार हेतु

मालिन्य को करती

स्वीकार सी

कदाचित भयंकर

काली कराल सी...

Friday, July 1, 2022

नागरिक अधिकार

आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नूपुर शर्मा पर कुछ बेहद ही तल्ख टिप्पणियां की गई, जिससे मीडिया का एक वर्ग अपनी विजय के रूप में प्रचारित कर रहा है। यह ठीक है कि नूपुर शर्मा को एक पार्टी प्रवक्ता के रूप में बोलते समय संयम रखना चाहिए था यह उनकी भूल है और इससे एक वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत हुई ,यह भी सही है।किंतु माननीय अदालत के बयान ने देश मे हुई हिंसा और यहां तक कि उदयपर की आतंकी कार्यवाही के लिए भी नूपुर शर्मा को जिम्मेदार बता कर ,एक प्रकार से इस बर्बर हमले को न्यायोचित ठहरा दिया। यदि मेरी धार्मिक भावनाएं आहत हो जाये तो क्या मुझे छुरा लेकर गरदने उतारने का हक मिल जाता है??? क्या माननीय अदालत तालिबानी न्याय को उचित ठहरा रही है?? क्या सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों पर कानून से अधिक मीडिया का प्रभाव नही दिख रहा???  नूपुर शर्मा यदि धार्मिक भावनाएं आहत करने की दोषी भी है तो भी एक नागरिक के रूप में उन्हें अपना पक्ष रखने और सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, उन्हें धर्मनिरपेक्ष दिखने के लिए सड़क पर तालिबानी न्याय के लिए फेंका नहीं जा सकता।