भारत का सामुद्रिक पड़ोसी ,मित्र श्री लंका वर्तमान में बहुत गंभीर आर्थिक विपत्ति के दौर से गुज़र रहा है।यह इस द्विपीय देश पर आज़ादी (1948)के बाद से आया सबसे बड़ा आर्थिक संकट है,अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने का प्रभाव सामाजिक और अस्थिरता के रूप में सामने आ रहा है।
अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है,श्री लंका की मुद्रा वैश्विक स्तर पर निम्नतम स्तर पर आ चुकी है।एक डॉलर 326श्री लंकाई रुपये के बराबर हो चुका है।सकल घरेलू उत्पाद दर नकारात्मक हो -3.0के स्तर पर है।
मुद्रास्फीति अपने चरम पर है अगले कुछ माह में इसके 70%तक बढ़ जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।यदि अन्य संकेतांको पर दृष्टि डाली जाए तो ये भी खतरनाक संकेत दे रहे हैं।सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले वाह्य ऋण 79.1%तथा सार्वजनिक ऋण101%है
जीडीपी के मुकाबले ऋण 119%से भी अधिक हो चुका है।12 अप्रैल2022 से देश द्वारा समस्त ऋण अदायगी को रोक दिया गया है।विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका है।पेट्रोलियम आयात बिल अदा करने में देश असमर्थ हो चुका है इसलिए स्कूल ,कॉलेज बंद है,बिजली की आपूर्ति नही हो पा रही, वस्तुओं का आयात न हो पाने के कारण आम लोगो की कठनाइयाँ बहुत बढ़ चुकी है।60 लाख से अधिक लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहें है।
श्री लंका के वर्तमान आर्थिक संकट को1970-80के लैटिन अमेरिकी ऋण संकट से भी गम्भीर माना जा रहा है।यह ऋण संकट'ला डेकडा पेडीर्डा' के नाम से जाना जाता है।60-70के दशक में ब्राज़ील,आर्जेन्टीना और मैक्सिको आदि ने बुनियादी ढांचे और औद्योगिकीकरण हेतु बड़े पैमाने पर ऋण प्राप्त किये।धीरे -धीरे यह ऋण स्तर जी डी पी के 50%से भी अधिक हो गया।1970-80 आते -आते ऋण स्तरों और मंहगाई में 1000%से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई ।इसका परिणाम यह हुआ कि आय और आयात गिर गए,आर्थिक विकास जड़ हो गया,बेरोजगारी और मुद्रास्फीति चरम पर पहुंच गई,मजदूरी का मूल्य 40%तक गिर गया जिससे क्रय शक्ति ह्रास हुआ।
इसी प्रकार एक अन्य आर्थिक संकट 1997 का एशियाई आर्थिक संकट है जो आसियान देशो से सम्बंधित है।थाईलैंड,इंडोनेशिया, फिलिपींस, और कोरिया की अर्थव्यवस्था इस दौर में लगभग ध्वस्त हो चुकी थी।इन देशों मे विदेशी ऋण अनुपात 1993-96 के मध्य 100%से 167% तक बढ़ गया था,जी डी पी शून्य वृद्धि दर प्रदर्शित कर रही थी।विदेशी मुद्रा की कमी,घरेलू मुद्रा का पतन,कर्ज़ में बढ़ोत्तरी भी देखी गई।
इससे स्पष्ट है कि भले आज श्री लंका अपनी गलत नीतियों के कारण इस आर्थिक संकट में फंस चुका है किंतु धैर्य,दृढ़ता और समझदारी से इस संकट से निकला जा सकता है।यद्यपि यह समय लेगा किंतु इस भवँर से उबरना संभव है।यह संकट विशुद्ध रूप सेअदूरदर्शिता का परिणाम है।लिट्टे के खात्मे के पश्चात श्रीलंका के पुनर्निर्माण हेतु तत्कालीन सरकारों द्वारा आधारभूत ढांचे और अनुत्पादक मदों पर व्यय हेतु विदेशों से बड़े निवेश प्राप्त किये गए।राजपक्षे परिवार सत्ता,सेना और शासन पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किये हुए था।परिवार के सभी सदस्य प्रधानमंत्री, राष्ट्पति,सेनापति और अन्य सभी महत्वपूर्ण पदो पर आसीन थे।इस दौर में चीन द्वारा अनेक परियोजनाओं बड़े निवेश किये गए।चीनी निवेश अनेक खुली और गुप्त शर्तो के साथ प्राप्त किये गए।अंतरराष्ट्रीय बाजार से अंधाधुंध ऋण तो प्राप्त हो गया किन्तु इनके ब्याज की अदायगी पर एक बड़ा हिस्सा दिया जाने लगा।जिससे उत्पादन के स्रोतों पर व्यय कम हो गया।परिणाम स्वरूप बेरोजगारी बढ़ी और विकास दर कम हुई।
विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम करने हेतु फ़र्टिलाइज़र को बैन कर दिया गया जिससे आयात बिल संतुलित किया जा सके।इस अदूरदर्शी कदम के घातक परिणाम हुए।श्री लंका का 27%श्रमिक कृषि क्षेत्र में काम करता है।आर्गेनिक खेती के फितूर ने कृषि उपज को आधा कर दिया।देश की बड़ी आबादी खाद्य असुरक्षा का शिकार हो गई। कोविड के कारण आय का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन उद्योग बर्बाद हो गया।कृषि और पर्यटन उद्योग चौपट होने से लोग बेरोजगार हुए और सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा।
सत्ता पर नियंत्रण बनाये रखने हेतु सरकार द्वारा लोकलुभावन निर्णय लिए गए।ईंधन और पेट्रोलियम पर भारी सब्सिडी दी गई।राष्ट्रीय आय संकुचित हो रही थी और विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो रहा था ,इन सबका एक ही परिणाम था अर्थव्यवस्था का पतन।जो आज मूर्त हो गया है।
फिलहाल श्री लंका को कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे वह इस विपदा से उबर सके।
सबसे पहले IMF से पैकेज प्राप्त करने और ऋण पुनर्संरचना का प्रयास किया जाना चाहिए।
दूसरा कृषि क्षेत्र को मजबूत करना होगा।बुवाई से पहले उर्वरक व ईंधन उपलब्ध करवाने होंगे। उपज बढ़ने से खाद्य संकट समाप्त होगा तथा अराजकता पर भी नियंत्रण होगा।
तीसरा उपाय पर्यटन उद्योग को पुनः खडा करना होगा जिससे विदेशी मुद्रा प्राप्त हो।
सर्वाधिक महत्वपूर्ण रणनीति निर्यातोन्मुखी औद्योगिकिकरण को अपनाना होगा।
विनिवेश, खर्च पर नियंत्रण आदि कठोर फैसले करने होंगे।
श्री लंका के नेतृत्व को यह समझना होगा कि लोकलुभावन नीतियां देश के हित मे नहीं होती।
कठोर फैसलों और साहस से श्री लंका इस विपत्ति से अवश्य उबर जाएगा।लंका के नागरिक दृढ़ इच्छाशक्ति वाले लोग है।आंतक पर विजय प्राप्त करने वाले इस संकट पर भी विजय प्राप्त करेगें, आवश्यकता है एक दृढ़ नेतृत्व और दो अच्छे मानसून की।