आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नूपुर शर्मा पर कुछ बेहद ही तल्ख टिप्पणियां की गई, जिससे मीडिया का एक वर्ग अपनी विजय के रूप में प्रचारित कर रहा है। यह ठीक है कि नूपुर शर्मा को एक पार्टी प्रवक्ता के रूप में बोलते समय संयम रखना चाहिए था यह उनकी भूल है और इससे एक वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत हुई ,यह भी सही है।किंतु माननीय अदालत के बयान ने देश मे हुई हिंसा और यहां तक कि उदयपर की आतंकी कार्यवाही के लिए भी नूपुर शर्मा को जिम्मेदार बता कर ,एक प्रकार से इस बर्बर हमले को न्यायोचित ठहरा दिया। यदि मेरी धार्मिक भावनाएं आहत हो जाये तो क्या मुझे छुरा लेकर गरदने उतारने का हक मिल जाता है??? क्या माननीय अदालत तालिबानी न्याय को उचित ठहरा रही है?? क्या सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों पर कानून से अधिक मीडिया का प्रभाव नही दिख रहा??? नूपुर शर्मा यदि धार्मिक भावनाएं आहत करने की दोषी भी है तो भी एक नागरिक के रूप में उन्हें अपना पक्ष रखने और सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, उन्हें धर्मनिरपेक्ष दिखने के लिए सड़क पर तालिबानी न्याय के लिए फेंका नहीं जा सकता।
जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों को एकपक्षीय सोच से बचना चाहिए। सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहने वाले पदों पर आसीन लोगों को तो विशेष रूप से। किसी भी मामले की व्यक्तिगत सोच को अलग से जाहिर किया जा सकता है।
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