Saturday, July 9, 2022

काली



 एकवेणी जपाकरणा

 नग्ना खरास्थिता | लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी || वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||" इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

काली परिवर्तन,शक्ति और युद्ध की देवी है।उनका भयानक रूप जीवन की भयावहता का प्रतीक है।जीवन हमेशा सुंदर,सज्जित और सरल

नही होता ।शिव आनंद का प्रतीक है।यानी जीवन की कठनाइयों से युद्ध करने के लिए अपनी खुशी और आनंद को स्वयं रौंदना पड़ता है।तब जीवन मे परिवर्तन औऱ शक्ति आती है।सौंदर्य व कोमलता दोनों ही आनंदित जीवन से जुड़े है,लास्य एवं काम की उत्पत्ति भी सौंदर्य से  होती है जो जीवन का स्रोत है। इस जीवन चक्र को अबाधित चलाते रहने के लिए भयंकरता, अन्याय और अधर्म पर नियंत्रण आवश्यक है यह मात्र अपनी समस्त ऊर्जा को केंद्रित कर ही हो सकता है।सृजन के लिए विनाश को,धर्म के लिए अधर्म को ,वास्तविक सौंदर्य के लिए वासना पर नियंत्रण आवश्यक है और यह नियंत्रण उस असीम ऊर्जा से ही प्राप्त हो सकता है जो स्व को भस्म कर,अपने आनंद की आहुति दे,ब्रम्हांड में विलीन होने से एकत्र होती है।कोयला काला है भस्म हो कर ऊर्जा देता है जो जीवन चलाता है ,यह ऊर्जा भी अपने रूप परिवर्तन के साथ काली राख बन जाती है।यानी काले से आरंभ काले पे अंत।जहाँ कुछ नहीं वो श्वेत है जहाँ समस्त ऊर्जा,समस्त रंग वो काला है।ब्रम्हांड काला है ,अंतरिक्ष काला है,ऊर्जा और प्रकाश के स्रोत तारे अपना चक्र पूरा कर काले हो जाते है।इसलिए काली ...काली है उस तप्त ऊर्जा का प्रतीक जो सृजन के लिए आवश्यक है।जीवन की उस शक्ति और जिजिविषा का प्रतीक जो सृष्टि के निर्माण के लिए परम आवश्यक है।माता का वाहन गधा है जो प्रतीक है निष्ठा,समर्पण और धैर्य का।परिवर्तन के लिये शक्ति औऱ धैर्य दोनों ही चाहिए।काली भयानक नही है ,विपदाओं से जूझने के उस साम्यता का प्रतीक है  जो विजय के लिए आवश्यक है।

नहीं शोभित श्रृंगार 

जिस पर

नही मदमाता रूप जिसका

कदाचित भयंकर 

काली कराल सी

उलझे केश ,

भृकुटि विशाल सी

यम को साधती 

शक्ति विकराल सी

तड़ित तैरती 

जिसके नयनों में

काल बंधा जिसके

 मस्तक पर

शिव को रौंदती चामुंडा 

स्वयं महाकाल सी

स्व भस्मीभूत हो

शेष किसी

 तप्त दग्ध सी

दृढ ,स्थिर ,निर्मोही

 किसी न्याय दंड सी

शक्तिपुंज किसी अमोघ

शस्त्र के प्रहार सी

कदाचित भयंकर

काली कराल सी

शमशान की भस्म पर

अघोरियों के तिलस्म पर

नृत्य करती किसी 

चांडाल सी

नहीं मदमाता रूप जिसका

ज्वलंत किसी अग्निकुंड

के मुखार सी

जिह्वा सुर्ख किसी

रक्तरंजित बाण सी

नहीं शोभित श्रृंगार....

कोमलता का मर्दन कर

सहज नारित्व का 

विसर्जन कर

पापियों के संहार हेतु

मालिन्य को करती

स्वीकार सी

कदाचित भयंकर

काली कराल सी...

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