अहंकार जिन्हें अपने हरित उपवन पर
बहती नदिया धरती के यौवन पर
शीतल पवन आनंदित जीवन पर
कह दो उन्हें जाकर
गर्वित मैं हूँ अपने जीवन पर
न हो ठंडी छाव मेरे आँचल में तो क्या
तपते अंगारो में मैंने जीवन राग गाया है
तलवारों की झंकारों से जिसने इतिहास बनाया है
सपूतों ने जहाँ मिट्टी में अपना लहु बहाया है
हंसते हंसते जहाँ बेटियां चढ़ गई चिताओं पर
जिन्होंने काल से टकराने को ही अपना
खेल बनाया है
अस्त हुआ जब हिन्दू स्वाभिमान का सूर्य
मैंने अपनी छाती के लहु से स्वातंत्र्य का अलख
जगाया है
जब खंडित हुए मंदिर,रक्त रंजित नगर सारे
तब भी मेरे तपते आंगन में
गुंजित रहे जय भवानी के हुंकारे
खंड खंड हुये धड़ जहाँ, पर शीश कोई झुका न पाया
ऐसे सिंहों की जननी
मैं वो मरुभूमि हूँ
हाँ मैं मरूभूमि हूँ, हाँ मैं मरूभूमि हूँ।
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