Monday, August 8, 2022

हाँ मैं मरूभूमि हूँ

अहंकार जिन्हें अपने हरित उपवन पर

बहती नदिया धरती के यौवन पर

शीतल पवन आनंदित जीवन पर

कह दो उन्हें जाकर 

गर्वित मैं हूँ अपने जीवन पर

न हो ठंडी छाव मेरे आँचल में तो क्या

तपते अंगारो में मैंने जीवन राग गाया है

तलवारों की झंकारों से जिसने इतिहास बनाया है

सपूतों ने जहाँ मिट्टी में अपना लहु बहाया है

हंसते हंसते जहाँ बेटियां चढ़ गई चिताओं पर

 जिन्होंने काल से टकराने को ही अपना खेल बनाया है

अस्त हुआ जब हिन्दू स्वाभिमान का सूर्य

मैंने अपनी छाती के लहु से स्वातंत्र्य का अलख जगाया है

जब खंडित हुए मंदिर,रक्त रंजित नगर सारे

तब भी मेरे तपते आंगन में 

गुंजित रहे जय भवानी के हुंकारे

खंड खंड हुये धड़ जहाँ, पर शीश कोई झुका न पाया

ऐसे सिंहों की जननी

मैं वो मरुभूमि हूँ

हाँ मैं मरूभूमि हूँहाँ मैं मरूभूमि हूँ।

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