Tuesday, March 14, 2023

तेरी मर्जी

जो लैला भी तू

मजनूँ भी तू ही था

उनका मिलना बिछड़ना

बस तेरी ही रज़ा था

तो क्यों तूने लैला को दिया हुस्न

मजनूँ को नवाज़ा इश्क़ से

जब दोनों के मुकद्दर में

बिछड़ना ही लिखा था,

 

जो रंग भी तू

बहार भी तू ही था

तेरी मर्जी ही बाग का

सजना था

तो क्यों गुलों को नाज़ुकई

आंधियों को दी बेरुखी

जब दोनों को

एक दूजे से उलट चलना था,

 

जो जमीं भी तू

आसमां भी तू

तेरी चाह ही दोनों का

एक दूजे पर झुकना था

क्यों दी मज़बूरी तरसने की

क्यों रेख लगावट की दिलों में

जब दोनों को

क्षितिज पर भी न मिलना था.

 

14.03.2023

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