अनंत प्रतीक्षा को प्रेम
जब उन्मेषित हो वर लेता है
झूमती धरती को आकाश
जहाँ बाहों में भर लेता है
यत्किंचित न खुलते नयन
जब श्वासों का राग मिलता है
सिंदूरी लालिमा सजती
अलक पर बदरा झूमता है
तब क्षितिज पुलकित
कलियों सा सजता है
मधुप टपकता,पुष्प बरसते
जब यह मिलन होता है
अनंत प्रतीक्षा को प्रेम
जब उन्मेषित हो वर लेता...
18.05.24
बेहतरीन भाव बोध से रची पगी रचना.
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