धधक रहा सदियों से
अनन्त अमिट ज्वाला आत्मसात किये
प्रदप्त लपटों में स्वयं को भस्म कर
प्रकृति को प्रखर दिन, शीतल रात दिए
ऊर्जा की अपरिमित यात्रा
अंगारों की अशेष खान लिए
वसुधा को जीवन,नव अंकुर,नव प्राण दिए
रक्तिम आभा तप्त काया
सुवानवाग्नि सा सुलगता हृदय लिए
दहकते अंगारों में युग युगों से शयन किये
दिग दिगंत में,आदि अनंत में
सृजन को सर्वदा साक्षात किये
मैं गोलाकार ,व्योम धरा में एकसार
विशाल,तप्त,सुंदर, साकार
सत्य को निर्विकार किये
जन्म जन्मांतर से
अखंडअग्नि ज्योति लिये
अगनित महाऔघ रश्मियों का पान किये
जिजिविषा का अक्षय पात्र लिए
मैं सूर्य हूँ, मैं सूर्य हूँ।
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