मेरी कविताएं - 1
कभी मिले दो अजनबियों की तरह
ज़ुदा पहचान लिए दो किनारों की तरह
बेनाम मंज़िल की ओर बहती दो कश्तियो की तरह
किस्मत ने बांधी डोर हमसफर की तरह
मंज़िले नई राहे ज़ुदा मिली
साथ चलना था जिन पर सयानों की तरह
बह कर आ बसी तुम्हारी दुनिया में
समुंदर के किसी गुमनाम धारे की तरह
पहचान खोकर इक नई पहचान पाई
आसमां में जड़े सितारों की तरह।
मेरी कविताएं - 2
बंद आंखों में ख़्वाब तुम्हारा था
थिरक रही थी धड़कने जिस पर वो साज़ तुम्हारा था
इस नींद में उम्र ही गुज़र जाए
तेरे ख्वाब के साथ दिन भी ठहर जाए
कोई हसरत ही न रह जाती
अगर ये खूबसूरत इतेफाक हो जाए
नींद खुलती औऱ दीदार तेरा
हो जाए।
No comments:
Post a Comment