Saturday, August 20, 2022

वीर सैनिक

धरा स्तब्ध है और मायूस सी

आंखे नम और ज़ुबा 

खामोश सी

गर्व जो तुमने दिया जवानी को

दौड़ें लहू में पारे सी

ढाई मोर्चे की चुनौती

ढहा दी गीली दीवार सी

पराक्रम होता मोहताज़ नहीं

शक्ति रहती नहीं ग़ुलाम सी

सीमाएं कवच नहीँ हो सकती गद्दारों की

हदे कैद नहीं हो सकती रणबाकुरों की

ज़मीन गलवांन हो या कश्मीर की

साहसी फैसलों के पीछे

सेना खड़ी मजबूत दीवारों सी

होंगे मंच अब नए से भूमिकाएं बदली सी

इस पार या उस पार

ध्वज पर रहेगी छाप

अमर चक्र सी


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