धरा स्तब्ध है और मायूस सी
आंखे नम और ज़ुबा
खामोश सी
गर्व जो तुमने दिया जवानी को
दौड़ें लहू में पारे सी
ढाई मोर्चे की चुनौती
ढहा दी गीली दीवार सी
पराक्रम होता मोहताज़ नहीं
शक्ति रहती नहीं ग़ुलाम सी
सीमाएं कवच नहीँ हो सकती गद्दारों की
हदे कैद नहीं हो सकती रणबाकुरों की
ज़मीन गलवांन हो या कश्मीर की
साहसी फैसलों के पीछे
सेना खड़ी मजबूत दीवारों सी
होंगे मंच अब नए से भूमिकाएं बदली सी
इस पार या उस पार
ध्वज पर रहेगी छाप
अमर चक्र सी
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