मेरी कविताएं - 1
शेर बन सियार नहीं हक़ के लिए बेशक लड़,
पर पीठ पर वार नहीं,
वतन से यारी जब
तो दुश्मनों से प्यार नहीं
मेरी कविताएं - 2
अपनी ही ज़हालत की कैद में तू,
बिन पंख का परवाज़ बन रहा छटपटा
तोड़ दे ये साजिशी कैद
ऐ दोस्त कँही से अब वो हौसला ला
इसी मिट्टी में पैदा हुए हम दोनों,
इसी मिट्टी में दफ़्न हो जाएंगे,
इश्क़ इक ही महबूबा से हम दोनों का,
तू दिल तो हम जां देकर जाएंगे
मेरी कविताएं - 3
जलती रहीं बस्तियां
खाक हुआ अमन
वो कौन थे जिन्होंने उजाड़ा ये चमन
तुम सरकार हो या नेता थे कहाँ जब जल रहा था ये
वतन।
आँसू का मज़हब क्या बताओ मुझे
जो खू बहाया गलियों में
उसका धरम तो दिखाओ मुझे
जिनके अपने लौटेंगे नहीं अब कभी घरों को
जिन चिरागों को बुझाया धरम के नाम पर
उस धरम की पहचान तो बताओ मुझे
गलियों में गूंजती रहीं चीखें तेरे वहशीपन की
घर फूँक के लूट ली दुनिया किसी की
हँसती बस्तियां बेज़ार की,
पाया क्या वो तो दिखाओ मुझे
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