Sunday, August 7, 2022

एक ही ख्वाहिश

बदनाम होने को इक ही फिसलन काफी है

नाम बनाने में तो उम्र गुज़र जाया करती है

मुद्दतों से एक ही ख्वाहिश तेरा साथ पाने की

क्यों पलभर में आइने सी बिखर जाया करती है

तेरी चाह में हम सब कुछ भुला बैठे

पर तेरे हिज़्र को ही ज़िन्दगी मेरा नसीब बना बैठी है

तुझसे वफ़ा को ही हमने अपनी तक़दीर माना

पर मूंद के पलकें तूने हमे बेगाना बना डाला

ताउम्र तेरी खुशी को अब्सार में बसाया हमने

मेरी एक अस्काम पर तूने नज़र से गिराया हमे

ज़िंदग़ी के सपने न सजे इस जहां में तो क्या

रूह मेरी क़यामत को ही अपना ख़ुदा मान बैठी है।


1 comment:

  1. एक साथ इतनी सारी पोस्ट करने की वजह?
    अलग-अलग भाव की अच्छी कविताएँ हैं। इनको तीन या चार पोस्ट में बाँट दो।

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