मेरी कविताएं - 1
जब सब इंसानियत के मसीहा ही थे तो दंगा हुआ
कैसे?
जब सब निगेहबान मुस्तैद ही थे तो इंसा नंगा हुआ
कैसे??
मेरी कविताएं - 2
संयम की आड़ में अक्सर कायरता छिप जाती है
यह कैसी शांति जो भाईयों की लाशों पर मौन रह
जाती है
मेरी कविताएं - 3
ज़ुल्म की इंतिहा भी नई सुबह रोक न पाएगी
सुन ले मेरे कातिल
तेरे हाथों में लगा मेरा खू ही,तेरी मौत का सबब बन जाएगी।
श्रंद्धाजलि करीमा बलूच
मेरी कविताएं - 4
आँखे नम है आज विदा की इस घड़ी में
गम तेरे जाने का नहीं
उन ज़ख़्मो का है जो तूने दिए
घाव भर जाएंगे ये पता मुझे भी
झिलमिल रोशनियाँ उतरेंगी मेरे आँगन
ये मानती मैं भी
पर फिर भी आँखे नम हैं.....
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