Thursday, December 22, 2022

गौरव की कलम से : न जीता है कोई न मरता है कोई

न जीता है कोई न मरता है कोई,

यूं ही वक़्त के साथ गुज़रता है हर कोई,

बस ज़िन्दगी के सफ़र से गुज़रते गुज़रते

कोई हंसता है तो रोता है कोई


किसी और के लिए सोचते और गुज़रते

अपने ही ख्याल में डूबते और उभरते

कुछ मुकम्मल कुछ बेहतर कर् जाए 

उसे ही यादों में रखता है हर कोई...

Wednesday, December 21, 2022

गौरव की कलम से

 सांसो की सरहद से दूर जाना चाहता हूं

मैं खुद को खुद से पाना चाहता हूं


धड़कनें खामोश होना चाहती हैं

मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं


बड़ी भारी बेकरारी है पर है वो बेशक बेवजह,

मैं खुद को बस ये समझना चाहता हूं।


मंजिलें मिलें न मिलें अब इसका जरा भी गम नही,

रूहानियत पर अब यकीं हो चला है

ये भी किसी जन्नत से कम नही।


माज़ी में खुद को अकेला पाना वो भी इक़्तिज़ा में।

पर यकीं था इख्लास का मुस्तक़बिल में है जरूर।


के मिल गया इख्लास भी अब और पाना चाहता हूं,

धड़कने ख़ामोश होना चाहती है

मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं।


मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं

मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं।

Wednesday, December 7, 2022

हो कर मेरे फलक से दूर

 आसमां में 

टिमटिमाता हुआ

तारा है तू,

किसी जहाँ का 

चमकता हुआ 

सितारा है तू।


है तू नज़रों में तो

मगर अहसासों में 

क्यों गुम है,

होके मेरे फलक से दूर

क्यों इस कदर

आवारा है तू।


चलना था गर

एक दूजे का

हमसफर बन,

इस सफर में

क्यों अकेला फिर

बंजारा है तू।


छूट गए हाथ

बिखर गए ज़ज़्बात

हो गए तन्हा

ऐ दिल!!!

फुरकत का

मारा है तू।