सांसो की सरहद से दूर जाना चाहता हूं
मैं खुद को खुद से पाना चाहता हूं
धड़कनें खामोश होना चाहती हैं
मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं
बड़ी भारी बेकरारी है पर है वो बेशक बेवजह,
मैं खुद को बस ये समझना चाहता हूं।
मंजिलें मिलें न मिलें अब इसका जरा भी गम नही,
रूहानियत पर अब यकीं हो चला है
ये भी किसी जन्नत से कम नही।
माज़ी में खुद को अकेला पाना वो भी इक़्तिज़ा में।
पर यकीं था इख्लास का मुस्तक़बिल में है जरूर।
के मिल गया इख्लास भी अब और पाना चाहता हूं,
धड़कने ख़ामोश होना चाहती है
मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं।
मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं
मैं खुद को खामोश करना चाहता हूं।