हे! अंतस के राम
तुम जागो
भय आकुलता, व्याकुलता
पर तलवार भांजो,
महादानव के दमन को
यज्ञ साधो,
आहुति दो विजय
हेतु
श्री प्राप्ति को
महासमुद्र
पर महाप्रयत्नों
का
पुल बांधो,
हे! अंतस के राम
तुम जागो,
जो बैठा व्याकुल
होकर भयभीत
पराजय से
विमुख हुआ
कर्त्तव्य
पथ से,
धनुष की टंकार से
उसका आकुल हृदय
साधो,
हे! अंतस के राम
तुम जागो,
खगोल, नक्षत्र समस्त
बंधे अपनी गति से
जन्म के साथ ही
मानव
बंधा अपनी नियति
से,
रणचंडी के आह्वान
पर
जो पीठ दिखाते हैं
माँ के दूध को
लज्जित करते
कापुरुष कहलाते
हैं,
क्षत्रिय का धर्म
ही
न्याय के लिए
रण में लौह टकराने
का
दूध का ऋण, लहु से चुकाने का
हे! राम अपने जीवन
का
लक्ष्य साधो,
नाराच के प्रहार से
पापियों को
मर्यादा
में बांधो
हे! अंतस के
राम...
30.03.2023
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