Thursday, September 14, 2023

युद्ध है तो युद्ध ही सही

 घिर जाए मन 

जो कभी दुविधा से

हो जाए उजाड़ 

दुनिया की भीड़ भाड़ से


पग हों छलनी

राह के शूलों से

दृष्टि होवे भ्रमित

गहरी धुंध से


श्वान भरते हों हुंकार

लड़ने को सिंह से

श्वास में घुले विष

मानो निकले भुजंग से


इस शोर में 

थमना, निर्विकार से

निकालना स्वयं को

दुविधा के ज्वार से


छूना क्षितिज को

गुज़र, राह के शूलों से

देखना इक किरण को

लड़ते हुए काली धुंध से


धैर्य से उठाना कदम

भिड़ जाना श्वानों के झुंड से

बांधना विष को कंठ पे

भुजंगधर,अभ्यंकर से


युद्ध है तो युद्ध ही सही

ये चुनौती है स्वीकार मुझे

भयभीत न होता क्षत्रिय

पिनाक की टंकार से


ठहरना ओ! वक़्त

लिखना है नाम अपना मुझे

इस अम्बर,धरा पर

तलवार की धार से


14.09.23

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