हलाहल के प्याले
टपकते नयनों से
हृदय में अंगार लिए
घेर खड़े विरह भेरी
तुम्हें कैसे विदा दूँ प्रिय!
अभी तो थम के
श्वांस ली थी तनिक
क्षितिज पर देख अरुणोदय
फूटी कलियां सुवासित मलय
तुम्हें कैसे विदा दूँ प्रिय!
शेष ही रहा
जो कहना था चाँदनी में तुझसे
अभी तो श्रृंगार
मिला नहीं दृष्टि से जी भर के
तुम्हें कैसे विदा दूँ प्रिय!
समर तुम्हें पुकारता
काँपता हृदय मेरा
अनजान भय से
पग की बेड़ी नहीं तुम्हारी
तुम्हें कैसे विदा दूँ प्रिय!
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26.09.23
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