Tuesday, October 31, 2023

बहार तू क्या गई चमन से..

बहार तू क्या गई चमन से..

हँसी का कतरा कोई जो

खिलने से पहले बिखर गया हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

पलकों पर एक बोझ भारी सा हो

मानो एक समुंदर रखा हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

थम सा गया दरिया हो

बहने से नदी ने इंकार किया हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

चाँद डूबा स्याह रातों में हो

बनी तक़दीर अमावस ही हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

एक ज़िद ने तोड़ा हो

मानो उम्र भर के भ्रम को जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

बुत सा दिखता अक्स हो

हादसों ने बनाया पत्थर हो जैसे.

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30.10.23

 

Wednesday, October 25, 2023

मौन विवशता को पहचानना तू

वक़्त की पैमाइश पर

कभी दिखे जो विपरीत खड़े

अदृश्य कारण ने हों पाँव जकड़े,

इसे नियति का लेख मान

स्वीकारना तू! 


सदा शब्द ही नहीं बोलते

मौन भी बोलता है कभी

और शब्द होते मजबूर,

आँखों की भाषा तब

पहचानना तू!


जीवन सागर में उत्पात करें लहरें

होकर विवश इन लहरों से

कभी डोले जो नैया उलट धार,

इसे जीवन का खेल मान

स्वीकारना तू!


जो सजाता, उजाड़ता जगत को

उसने ही लिखे स्मित और अश्रु के

ऐसे खेल कई,

इसे विधि का विधान

जानना तू!


वक़्त की चाक पर घूमते

दिन रात, एक दूसरे के उलट

देखते पहरों में जीवन को कटते,

ऐसी मौन विवशता को

पहचानना तू!


विपरीत ध्रुव साधते धरा को

दूर दिखते पर दूर नहीं

युगों की प्रतीक्षा मिलती क्षितिज पे

प्रकृति का यह सत्य

जानना तू!

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25.10.23