Tuesday, October 31, 2023

बहार तू क्या गई चमन से..

बहार तू क्या गई चमन से..

हँसी का कतरा कोई जो

खिलने से पहले बिखर गया हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

पलकों पर एक बोझ भारी सा हो

मानो एक समुंदर रखा हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

थम सा गया दरिया हो

बहने से नदी ने इंकार किया हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

चाँद डूबा स्याह रातों में हो

बनी तक़दीर अमावस ही हो जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

एक ज़िद ने तोड़ा हो

मानो उम्र भर के भ्रम को जैसे.


बहार तू क्या गई चमन से..

बुत सा दिखता अक्स हो

हादसों ने बनाया पत्थर हो जैसे.

+

30.10.23

 

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