रघुवर धरो पग
तृप्त हो ये धरा, अम्बुद
स्वीकार करो वंदन
हे राम! हे रघुनंदन!
काहे रहे विमुख
हे राजीव लोचन!
हृदयनलनी गई कुम्हल
रेत हुए सब हृद
जिस दिन से फिरे पग
सकल भूमि रही तप
व्याकुल मीन, सरोज
तड़पे खग, मृग
सहे वियोग चौदह बरस
एक युग रहा विकल
की प्रतीक्षा अनवरत
अब श्री विराजें, मिटे तम
सिया संग रघुवर धरो पग
पुर, नगर, आँगन हो पावन
जलें दीपों से दीप
झूमे प्रजा गुंजित हो गीत
अब मिले यह प्रतिफल
हृदय सजो रघुवर
मर्यादाएँ हों प्रतिष्ठित हे सियवर!
स्वीकार करो वंदन...
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09.11.23
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