अभी थका नहीं मैं
तिमिर से लड़ते हुए
किरनपुंज है व्यग्र
मेरे हृदय का
इस तम को देखने को
छँटते हुए..
फिर बजेगी रणभेरी
सूरज से आँख मिलाते हुए
चमकेगी असि
ले नाम भवानी का
देखेगा काल तड़ित को
लहराते हुए..
अभी शेष है
तप्त प्रवाह रुधिर का
उद्वेग खड़ा, भय को बाँधे हुए
यौवन फड़कता ललकार पर
देखेगा रण पौरुष को संघर्ष
करते हुए..
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04.11.23
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