शांत सी ज़िंदगी में
कैसी ये तरंग है
क्या नहीं पाया
जिसे खोजता ये मन है
न को तेरी नियति मान
लिया स्वीकार है..
फिर ये कैसा कोलाहल,
क्यों व्यथित हृदय
आज है
साँसें हैं कुछ घुटी
सी
क्यों आँखें भीगना
चाहती
क्यों भंग होना चाहता
ये मौन आज है..
ये क्या चुभता..
दिल के किसी कोने में
क्यों अहसास अधूरे
होने का
ये कैसा विषाद है..
+
05.12.2023
No comments:
Post a Comment