Tuesday, December 5, 2023

ये कैसा विषाद है

शांत सी ज़िंदगी में

कैसी ये तरंग है

क्या नहीं पाया

जिसे खोजता ये मन है

को तेरी नियति मान

लिया स्वीकार है..

फिर ये कैसा कोलाहल,

क्यों व्यथित हृदय आज है

साँसें हैं कुछ घुटी सी

क्यों आँखें भीगना चाहती

क्यों भंग होना चाहता

ये मौन आज है..

ये क्या चुभता..

दिल के किसी कोने में

क्यों अहसास अधूरे होने का

ये कैसा विषाद है..

+

05.12.2023


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