अकारण किसी गहरी खोह
में
भटकता क्यों हृदय है?
क्यों विचलित होता
मन
ये कैसा मोह है?
तू सृष्टि का एक तिनका
काल का क्षणांश मात्र,
रचना रचे रचियता
तेरी नियति तो पहले
से ही तय है..
शरीर, चित्त, स्वरूप
कुछ भी तो तेरा नही,
फिर तुझे क्या खोने
का भय है?
जीवन मरण शशिधर के
हाथों में,
संयोग-वियोग की लीला
निश्चित ..
प्रारब्ध तेरे वह गढ़ता
उसके तय मार्ग पर ही
जीवन आगे बढ़ता,
फिर भाग्य लेख से
व्यथित होता क्यों
हृदय है?
अकारण ही किसी....
09.03.2024
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