जड़ में, चेतन में
धारों के प्रवाह में
स्रोतों के उछाह में
उपवन की हरीतिमा में
आकाश की नीलिमा में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
पहाड़ों के ठहराव में
घाटियों के गहराव में
धरा के फ़ैलाव में
ज्वलंत अग्निशिखाओं में
शीतल, ठंडी छाव में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
जलधि के अंतस में घूमते ज्वार में
महाकाल के हुँकार में
ध्वनियों के संगम ओंकार में
आकार में, निर्विकार में
व्योम से अंतरिक्ष के एकाकार में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
सृष्टि की सुंदरता में
रण की वीभत्सता में
प्रत्यक्ष में, अदृश्य में
घटित में, अघटित में
प्रसन्नता, शोक में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
जब हृदय हार बैठे
लक्ष्य न कोई शेष बचे
फँसे निराशा के भँवर में
एक कण जो आशा दे
जो साहस, प्रेरणा भर दे
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
रुष्ट पृथ जब कंपन करे
जीवन का मर्दन करे
प्रलय बाद जो जीवन जागे
उस नव-प्रभात में
मनुज के पराक्रम में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
किंकर्तव्यविमूढ़ समर में
घात प्रतिघात के भँवर में
फाल्गुनी की निराशा हरे
वो स्थितप्रज्ञ जो उन्मेषित करे
कर्तव्य पथ पर अग्रेषित करे
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
प्रदीप्त उजियार में
घनघोर अंधकार में
दुर्गा के प्रहार में
काली के संहार में
जन्म में, मृत्यु में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
ब्रह्मा की रचनात्मकता में
नारायण की मोहकता में
शिव की अभ्यंकरता में
नारी की कोमलता में
पुरुष की दृढ़ता में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में
जीवन के हर द्वार में
काल के विधान में
आत्मा के स्पंदन में
परमात्मा से सम्मिलन में
मैं ही हूँ, मैं ही तो हूँ.
तेरे यंत्र तंत्र बिखराव में
आवृत में अनावृत में
सत्य की अग्नि में
सूक्ष्म में विराट में
फचाम मुझे!!
मैं हूं, में ही तो हूँ..