ओ क्रांति!! सुना है तुम
तख्त ओ ताज उखाड़ देती हो
रंगीन सपने दिखा
सुंदर बाग उजाड़ देती हो
जिन्हें सजाना है गुलशन
उनके हाथों में मशाल थमा देती हो
निराशा के समंदर का तुम
एक उग्र तूफान हो
सजीली सपनों से सजी
आँखों में तुम ज्वाला जला देती हो
वो ज्वाला जिसमे भस्म
इंसानियत होती सबसे पहले
पर सुनो क्रांति!!
तुम हो रोमांचक,करती सम्मोहित
जहरीले पाश तुम्हारे
है अदभुत आकर्षण तुममें
पर विश्वसनीय नहीं तुम हो
क्योकि नहीं ठहराव तुम में
इंतज़ार न खत्म होगा कभी,
इस ज़मीन पर तेरा ओ क्रांति!!
हैं हरी धरती,बहती कलकल धाराएं है
भरे हैं पेट जनमानस के!
भूखों के पेट मे ही जलती
पहले तेरी ज्वाला है
हमारे हाथों में हुनर
खेतों में पसीना बहाने की कुव्वत है
हम हैं आस्तिक!
विश्वास पर जीने वाली कौम
झूठे सपने भूखों को होंगे सुहाते
हमारे पेट भरे हुए है क्रांति!!
देखते हैं हम सपनों के उस पार भी
क्रांति!! तुम जब तहस-नहस करके
बुझाओगी अपनी मशाल,
तब कैसे समेटेंगे हम इस तबाही को
कहाँ से आएंगे वो हाथ,?
जो रोकेंगे तेरी शक्ल में आई बर्बादी को
सुनो क्रांति!!
जीवन को समर मान
लड़ने वाले योद्धा हम हैं,
हर संग्राम हमारा सृजन हेतु
कृष्ण आराध्य हमारे
निष्काम कर्म को जीने वाले हम हैं
सोद्देश्य,श्रमिक जीवन जीने वाले हम है
उतार लाया था एक पुरखा हमारा
भागीरथी को हिमालय से
विनाश नहीं सृजन लक्ष्य था उसका
हमें न भटकाओ क्रांति!!
हम जीवन मर्म समझने वाले लोग हैं
निरुद्देश्य हिंसा हमारे
जीवन का लक्ष्य नहीं
हम स्वप्न सजाने वालों की संतति
पूर्णता की चाह रखने वाली कौम हैं
ये आधी हिंसा,आधी शांति
हमें न सुहाती क्रांति!!
17.09.25