Thursday, March 14, 2024

हम न जाने कहाँ जाएँगे

एक रोज़ हम न जाने

कहाँ गुम जाएँगे

बस किस्से ही रह जाएँगे

साथ छूट जाएँगे

हाथ खाली रह जाएँगे

बस यादें हमारी

दीवारों से टकरा

वापस आएँगी

हम न जाने

किस धुन्ध में खो जाएँगे

शब्द गूँजेंगे

दिल की गहराइयों में

अक्स मिट जाएँगे

दुनिया यहीं रह जायेगी

हम न जाने कहाँ जाएँगे

यूँ ही रंग सजे रहेंगे

घिरे रहोगे मेलों में

फिर भी तन्हाइयों में

हम याद आएँगे...

 

14.03.24


Saturday, March 9, 2024

कहाँ ठहरेगा ये अंतर्द्वंद्व

स्वयं में छिपाया

गरल और पीयूष है

स्वयं से ही बाँध रखे

सृष्टि और श्मशान भी

स्वयं में ही तैरता

आनन्द और तांडव है

स्वयं ही देव और दानव भी

स्वयं का स्वयं से

जो बिखरे तारतम्य

सृष्टि होगी शमशान

देव मृत होगा

पी गरल जागेगा दानव

आनंद तांडव में दहित होगा

मौन नहीं पराजय

जो चुप रहे धरा

वो भूडोल होगा

बिखरेगा कण कण

स्रोत होंगे ध्वस्त

अनल फूटेगा

तपेगा आकाश

जीवन पातालाभिमुख होगा

कैसे सूर्य उजागर होगा

कहाँ ठहरेगा ये अंतर्द्वंद्व?

फिर कहाँ बसंत होगा...

09.03.2024


भटकता क्यों हृदय है

अकारण किसी गहरी खोह में

भटकता क्यों हृदय है?

क्यों विचलित होता मन

ये कैसा मोह है?

तू सृष्टि का एक तिनका

काल का क्षणांश मात्र,

रचना रचे रचियता

तेरी नियति तो पहले से ही तय है..

शरीर, चित्त, स्वरूप

कुछ भी तो तेरा नही,

फिर तुझे क्या खोने का भय है?

जीवन मरण शशिधर के हाथों में,

संयोग-वियोग की लीला निश्चित ..

प्रारब्ध तेरे वह गढ़ता

उसके तय मार्ग पर ही

जीवन आगे बढ़ता,

फिर भाग्य लेख से

व्यथित होता क्यों हृदय है?

अकारण ही किसी....

09.03.2024


Thursday, March 7, 2024

छत सलामत रहे बच्चों के सर पर

बेजुबां तो न थी

पर जुबां सी के दफ़न किया

खुद को दीवारों की तह में

ताकि छत सलामत रहे

बच्चों के सर पर मेरे..

 

बेशक कद मुझसे बडा था तेरा

पर किरदार में छोटे थे

खुद से भी ये सच छुपाती रही

ताकि छत सलामत रहे

बच्चों के सर पर मेरे..

 

क्या जानोगे कभी

उस घर की कीमत तुम?

जिसे पुर्जा-पुर्जा कट के वो चुकाती रही

ताकि छत सलामत रहे

बच्चों के सर पर मेरे..

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07.03.2024