है वैराग्य प्रेम भी
एक साधना मोह-विहीन
तज आस तृप्ति की
चुनता प्रतीक्षा शिला
सी..
बाँध हृदय में तप्त शूल
भटकता अनजान मरु में
अनुराग बनाता वियोगी
दहित कर चाह संसार
की..
यात्रा यह प्रेम की
अनंत, अविराम सी
स्वयं में ही उपजती
समाहित होती स्वयं
में ही..
27.11.2023